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पूरक आहार से पोषण होगा पूरा, सुपोषित होगा बचपन सारा बाल कुपोषण रोकने में पूरक आहार की होती है सशक्त भूमिका,छह माह  के बाद शिशुओं के लिए पूरक आहार अनिवार्य,2 साल तक का बेहतर पोषण शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए जरूरी‌।*

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*पूरक आहार से पोषण होगा पूरा, सुपोषित होगा बचपन सारा बाल कुपोषण रोकने में पूरक आहार की होती है सशक्त भूमिका,छह माह  के बाद शिशुओं के लिए पूरक आहार अनिवार्य,2 साल तक का बेहतर पोषण शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए जरूरी‌।*

धीरज,रमेश गुप्ता की रिपोर्ट गया बिहार

गया  में बाल कुपोषण शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य में बाधक होने के साथ उनके जीवन के सर्वांगिन विकास में बड़ा अवरोधक होता है और शुरुआती 2 साल की अवधि में शिशुओं को प्रदान की गयी बेहतर पोषण स्वस्थ जीवन की आधारशिला तैयार करती है जिसमें 6 माह तक केवल स्तनपान एवं 6 माह के बाद पूरक आहार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है बिहार में वर्ष 2005-06 की तुलना में वर्ष 2015-16( राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) में जहाँ 6 माह तक केवल स्तनपान करने वाले शिशुओं में लगभग दोगुना बढ़ोतरी हुयी ,वहीं 6 माह के बाद पूरक आहार प्राप्त करने वाले शिशुओं की प्रतिशत में गिरावट आयी है वर्ष 2005-06 में जहाँ केवल 28 प्रतिशत शिशु 6 माह तक केवल स्तनपान करते थे, वहीं 2015-16 में यह बढ़कर 53.4 प्रतिशत हो गया है जबकि वर्ष 2005-06 में 54.5 प्रतिशत शिशुओं को 6 माह के बाद पूरक आहार प्राप्त होता था,जो वर्ष 2015-16 में घटकर 30.8 प्रतिशत हो गया है साथ ही वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 6 माह से 23 माह के बीच केवल 7.3 प्रतिशत शिशुओं को ही पर्याप्त पोषण प्राप्त हो पाता है श्वेता सहाय सहायक निदेशक आईसीडीएस ने बताया राज्य के साथ देश भर में पूरक आहार की चिंताजनक स्थिति को देखते हुए ही ‘पूरक आहार’ को सितंबर माह में मनाए जा रहे राष्ट्रीय पोषण माह की थीम बनाई गयी है इसके लिए इस पोषण माह में विशेष ध्यान दिया जा रहा है राष्ट्रीय पोषण अभियान के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए कुल 6 मानक तैयार किए गए हैं जिसमें आईसीडीएस-कॉमन एप्लिकेशन सिस्टम, सामुदायिक आधारित गतिविधियां, इंक्रीमेंटल लर्निंग एप्रोच, कंवर्जेंस,नवीकरण एवं इनसेंटीव को शामिल किया गया है पोषण माह के दौरान इन सभी का अधिकतम इस्तेमाल करते हुए ‘पूरक आहार’ पर जागरूकता बढ़ायी जा रही है।

*जिले में यह है स्थिति:* राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के उम्र के हिसाब से ऊर्जा की आपूर्ति जरूरी है इस अनुसार गया  में 28.4 प्रतिशत शिशु छह माह तक केवल स्तनपान करते हैं 6 माह के बाद 27.5  प्रतिशत शिशुओं में ही पूरक आहार की शुरुआत हो पाती है जबकि 6 माह से 23 माह के बीच 6.7 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त आहार प्राप्त हो पाता है इसलिए जरुरी है पूरक आहार: छह माह तक शिशु का वजन लगभग दो गुना बढ़ जाता है एवं एक वर्ष पूरा होने तक वजन लगभग तीन गुना एवं लम्बाई जन्म से लगभग डेढ़ गुना बढ़ जाती हैजीवन के दो वर्षों में तंत्रिका प्रणाली एवं मस्तिष्क विकास के साथ सभी अंगों में संरचनात्मक एवं कार्यात्मक दृष्टिकोण से बहुत तेजी से विकास होता है इसके लिए स्तनपान के साथ अतिरिक्त पोषक आहार की जरूरत होती है इसलिए 6 माह के बाद शिशुओं के लिए स्तनपान के साथ पूरक आहार देना चाहिए‌।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 6 माह से 8 माह के बीच प्रतिदिन 615 किलो कैलोरी, 9 माह से 11 माह के बीच 686 किलो कैलोरी एवं 12 माह से 23 माह के बीच 894 किलो कैलोरी की जरूरत शिशुओं को होती है जिसमें भारत जैसे विकासशील देशों में स्तनपान के जरिए 6 माह से 8 माह के बीच 413 किलो कैलोरी, 9 माह से 11 माह के बीच 379 किलो कैलोरी एवं 12 माह से 23 माह के बीच 346 किलो कैलोरी की आपूर्ति हो पाती है और इस लिहाज़ से स्तनपान के अलावा शिशुओं को 6 माह से 8 माह के बीच 200 किलो कैलोरी, 9 माह से 11 माह के बीच 300 किलो कैलोरी एवं 12 माह से 23 माह के बीच 550 किलो कैलोरी की अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होती है ऐसे दें शिशुओं को पूरक आहार : 6 माह के शिशुओं को प्रतिदिन 2 से 3 बार, 6 से 9 माह तक के शिशुओं को 1 बार नाश्ता के अलावा 2 से 3 बार, 9 से 12 माह तक के शिशुओं को प्रतिदिन 3 से 4 बार तथा 1 से 2 बार नाश्ता एवं 12 से 23 माह तक के शिशुओं को प्रतिदिन 3 से 4 बार तथा 1 से 2 बार नाश्ता ‘पूरक आहार’ के रूप में देना चाहिए।6 से माह के शिशुओं को प्रत्येक भोजन में 2 से 3 चम्मच, 6 से 9 माह तक के शिशुओं को प्रत्येक भोजन में लगभग आधा कटोरी, 9 से 12 माह तक के शिशुओं को कम से कम पौन कटोरी एवं 12 से 23 माह तक के बच्चों को प्रत्येक भोजन में कम से कम एक कटोरी पूरक आहार देनी चाहिए एवं बच्चों के आहार में मसला हुआ आहर,गाढे एवं सुपाच्य भोजन शामिल करना चाहिए. वसा की आपूर्ति के लिए आहार में छोटा चम्मच घी या तेल डालना चाहिये।दलिया के अलावा अंडा, मछली,फलों एवं सब्जियों जैसे संरक्षक आहार शिशुओं के स्वस्थ विकास में सहायक होते हैं।

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